रविवार, 24 नवंबर 2013

छाता मेरा




रंग बिरंगे फूल विराजे
एक टांग पर तिकधिन नाचे
जैसे गुडिया फ्रॉक निराला
मेरा छाता है मतवाला

बरखा से वो मुझे बचाये
भरी धूप माथा सहलाये
दादा जी का साथी सच्चा
लगता नाना को भी अच्छा

मोर नाचते जब उपवन में
इन्द्रधनुष सजते हैं नभ में
छाता मेरा मुझे बुलाये
गोल गोल घूमे इतराये


चित्र : गूगल से साभार