रंग बिरंगे फूल विराजे
एक टांग पर तिकधिन नाचे
जैसे गुडिया फ्रॉक निराला
मेरा छाता है मतवाला
बरखा से वो मुझे बचाये
भरी धूप माथा सहलाये
दादा जी का साथी सच्चा
लगता नाना को भी अच्छा
मोर नाचते जब उपवन में
इन्द्रधनुष सजते हैं नभ में
छाता मेरा मुझे बुलाये
गोल गोल घूमे इतराये
चित्र : गूगल से साभार
सुंदर बालकविता
जवाब देंहटाएंमज़ा आया इस बाल रचना का ...
जवाब देंहटाएंमजेदार कविता .....
जवाब देंहटाएंआ हा.. आ हा...
जवाब देंहटाएंकल 01/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ ....और मुझे बचपन की ढेर सारी यादों ने घेर लिया यहाँ तो .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सरल और बच्चों के है ... आनंद आ गया
क्या बात है :)
जवाब देंहटाएं