गुनगुन करते
गीत सुनाते
बिना बात सिर
पर चढ़ जाते
गगन तले व नदी
किनारे
रहें पार्क में
साथ हमारे
सुई लगाता बनकर
डॉक्टर
बीमारी दे जाता
अक्सर
साढ़े तीन हैं
नाम में अक्षर
जी हाँ दादू वो
हैं मच्छर
दादी को मैनें
बतलाया
मजबूत इक किला
बनवाया
द्वार नहीं पर
कई झरोखे
लेकिन मच्छर इक
न झाँके
सुन लो मच्छर
तुम थे ज्ञानी
हम ले आये
मच्छरदानी
अब कितना भी
शोर मचाओ
दूर खेलो पास ना
आओ
:)...बहुत ही बढ़िया।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत ही सुन्दर बाल गीत
जवाब देंहटाएंbahut sundar, Vandana ji.
जवाब देंहटाएंभाग जा मच्छर
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत ही अच्छी कविता!!!... बेचारे मच्छर जी को अच्छा सबक सिखाया.....:)
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी बाल कविता ... बेचारा मच्छर ..
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत सुन्दर बाल गीत....
जवाब देंहटाएंफिर गुड नाईट वाले क्या करेंगे?
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बाल गीत वंदना जी.
सुन्दर गीत .... आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत
जवाब देंहटाएंमच्छर जी का गान
जवाब देंहटाएंअच्छा गाया है आपने.
सुन्दर बाल कविता, बधाई.
जवाब देंहटाएंमच्छर बेचारा अब क्या करे :)
जवाब देंहटाएंअच्छी बाल कविता के लिए बधाई !!!!!
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंजब भी जाओगे मच्छरदानी में
जवाब देंहटाएंमैं भी साथ चला आऊंगा
बिना तुम्हारी परमिशन के
अपना गीत सुना जाऊँगा
मच्छरदानी में छेद हुआ तो
मेरी पौ बारह होगी जी
वंदन करके आपका मै तो
दावत खूब उड़ा जाऊँगा.
आपके सुन्दर गीत में मुझे भी कहने का कुछ मन हो गया वंदना जी.
आपने मेरे ब्लॉग को क्यूँ विस्मृत किया हुआ है जी.