शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

मेरी पतंग

फरफर करती उड़ती जाती 
मन को ये भाने वाली है
रंग बिरंगे रूप सजाये
पतंग मेरी मतवाली है

कोई माथे चाँद सजाये
कभी तिरंगा हम फहराएं
संग दूसरों के मिलजुलकर
खेले वो खेल निराली है

लम्बी सी इक पूंछ लगाये
सर पर ताज पहन इठलाये
बादल से है दौड़ लगाती
पंछी से करे ठिठोली है


छूट डोर हाथों से जाये
या कि पतंग कभी कट जाये
सुख दुख का ही नाम जिंदगी

समझाये मेरी सहेली है 








सभी चित्र गूगल से साभार