फरफर करती उड़ती
जाती
मन को ये भाने वाली
है
रंग बिरंगे रूप
सजाये
पतंग मेरी मतवाली है
कोई माथे चाँद सजाये
कभी तिरंगा हम
फहराएं
संग दूसरों के
मिलजुलकर
खेले वो खेल निराली
है
लम्बी सी इक पूंछ
लगाये
सर पर ताज पहन
इठलाये
बादल से है दौड़
लगाती
पंछी से करे ठिठोली
है
छूट डोर हाथों से
जाये
या कि पतंग कभी कट
जाये
सुख दुख का ही नाम
जिंदगी
समझाये मेरी सहेली
है
सभी चित्र गूगल से साभार