नभ आँगन को छूकर चहकूँ, थामे हाथ तिहारा
नाजुक न्यारा हम दोनों का, रिश्ता दादू प्यारा
महावीर गौतम कोलंबस, सुनूँ सभी गाथाएं
ब्लॉग आपके लिखकर सीखूं, रसभीनी कवितायें
सभी जटिलताएं जीवन की, अनुभव से सुलझाना
कंप्यूटर पर हम ढूंढेंगे, कोई खास पुराना
विश्वास जगाता है हरदम, ये बाँहों का घेरा
मंदिर मस्जिद गिरिजाघर सम, गुरुद्वार तुम मेरा
चलो न दादू झूलों पर हम, ऐसे पेंग बढ़ाएं
सूरज चंदा बाँध पोटली, साध उजाले गायें
चित्र गूगल से साभार
बहुत ही सुंदर बाल रचना ......
जवाब देंहटाएंबहुत खूब,सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंबालपन के निर्मल सहज भावों की सुन्दर पंक्तियाँ.
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनायें
दुश्मन कोई भी सीने से लगाना नहीं भूले ,
जवाब देंहटाएंहम अपने बुजुर्गों का ज़माना नहीं भूले .
जन्नत बन जाता जहाँ, बसते जहाँ बुजुर्ग ।
इनके रहमो-करम से, देह देहरी दुर्ग ।
देह देहरी दुर्ग, सुरक्षित शिशु-अबलायें ।
इनका अनुभव ज्ञान, टाल दे सकल बलाएँ ।
हाथ परस्पर थाम, मान ले रविकर मिन्नत ।
बाल-वृद्ध सुखधाम, बनायें घर को जन्नत।।
बढ़िया प्रस्तुति .
कविता और चित्र का अद्भुत सामंजस्य और समस्वरता है यहाँ :
देखें बाल कविता इस चित्र पर -
नभ आँगन को छूकर चहकूं,थामे हाथ तिहारा ,
नाजुक न्यारा हम दोनों का रिश्ता दादू प्यारा।
बहुत सुन्दर पोस्ट
जवाब देंहटाएंHow to repair a corrupted USB flash drive
बहुत बढ़िया भाव....
जवाब देंहटाएंआदरणीया, सुन्दर रचना की बधाई स्वीकारें !
जवाब देंहटाएंसुंदर भावुक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी और भावमयी रचना...
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