गुरुवार, 31 मई 2018

एक शहीद की बेटी



जग जीवन का रेलम-पेला
चढ़ काँधे मैं देखूँ मेला
मन को जब अरमान सताये
पापा तुम बिन कुछ ना भाये
तुम होते फुटबॉल खेलती
हंसकर सब परिणाम झेलती
झूलों पर जब पींग बढाती
ऊँचाई ना कभी डराती
डोली जब ससुराल चलेगी
कमी पिता की बहुत खलेगी
देखूं जब भी परचम प्यारा
मुझे मिले आशीष तुम्हारा
पदचिन्हों पर सदा चलूंगी
तुम जैसी मजबूत बनूँगी
चन्दन चर्चित नाम करूंगी
ऐसा मैं इतिहास रचूँगी 


गूगल पर उपलब्ध चित्र से प्रेरित बालकविता