बात सुनो तुम मेरी भी
कभी चाँद पर रहती थी
चरखा काता करती थी
कहाँ गयी बूढी दादी
तुम मुझको बतलाओ जी
बिटिया अब नया जमाना
नया भेद सबने जाना
छोड़ो अब वो ज्ञान पुराना
नया ज्ञान अपनाओ जी
नहीं हवा नाही पानी
कोशिश अब ये इंसानी
कभी बसेगी कॉलोनी
घर अपना बनवाओ जी
कोशिश तुम ये ही करना
तभी चाँद पर पग धरना
सीखो प्यार से जब रहना
सुन्दर जहां बनाओ जी
प्यारी कविता...
जवाब देंहटाएंसुन्दर सन्देश देती हुई प्यारी रचना ..
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया।
जवाब देंहटाएंसादर
sunder rachna ,
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत बहुत प्यारी प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंकित्ता प्यारा गीत..बधाई !!
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत !
जवाब देंहटाएंअरे वाह!
जवाब देंहटाएंबच्चों के लिए इतनी सुन्दर दादी की थ रचना में!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है यह तो!
बहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .
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