पीहू के दादा जी अभी हाल ही में गाँव से आये हैं। रिटायर होने के बाद से वो गाँव में ही रहना पसंद करते थे पर पीहू की जिद पर उन्हें इस बार आना ही पड़ा आखिर पीहू उनकी लाडली जो है। पीहू बेहद खुश थी। जहाँ तक संभव होता वह दादाजी के इर्द गिर्द ही मंडराती रहती। उधर उसका भाई तरु दादाजी से प्यार तो बहुत करता था लेकिन ज़्यादातर अपने खेल में ही मस्त रहता और दोस्तों के साथ रहना ज्यादा पसंद करता । जहाँ पीहू दादाजी के जीवन अनुभव सुननेमें रूचि लेती वहीँ तरु घडी टेप रेकॉर्डर आदि को खोलने बंद करने में व्यस्त रहता। दिनचर्या चाहे जो भी रहे पर दोनों बच्चे शाम के समय दादाजी के साथ पार्क में ज़रूर जाते। वहीँ दादाजी ने भी अपने हमउम्र साथी तलाश कर लिए थे जिनके साथ गप-शप करते वक़्त कैसे गुज़र जाता था पता ही नहीं चलता था। शहर में आने के बाद दादाजी समाज में आ रहे सकारात्मक बदलाव को महसूस कर खुश होते थे। सभी बच्चे छुट्टियों में कोई न कोई कोर्स कर रहे थे। जैसे कंप्यूटर, इंग्लिश कान्वेर्सशन स्किल ,व्यक्तित्व सुधार आदि और कुछ बच्चे होबी क्लासेस भी जुड़े थे। दूसरी ओर उन्हें कभी कभी यह भी लगता कि बच्चे स्वप्रेरित होकर काम नहीं करते एक बंधे बंधाये ढर्रे पर चलते रहते हैं । दादाजी नए विचारों कि कमी महसूस करते .......... अचानक उन्हें एक नया आईडिया सूझा। उन्होंने पार्क में एकत्रित बच्चों के सामने अपने विचार रखते हुए कहा - "बच्चों आजकल पर्यावरण से जुडी सबसे गंभीर समस्या क्या है ?" "प्रदूषण ......" "वनों का विनाश .....". "पानी कि कमी ......" हाँ बच्चों अब आप यह बताइए कि पानी बचाने के लिए क्या करना चाहिए ? सभी बच्चे एक साथ अपनी राय देने लगे और शोर गुल में कोई भी बात सुनाई नहीं दे रही थी। सबको रोकते हुए दादाजी ने कहा -"भई ऐसे नहीं आप सब अपने आईडिया प्रायोगिक रूप में दिखायेंगे ........और बेस्ट आईडिया पुरस्कृत भी होगा ...... । सुनकर सभी बच्चे बहुत खुश हुए । सभी को दस दिन का समय दिया गया। .... दस दिन बाद .... कुछ बच्चों ने कवितायेँ लिखी थी । बहुत सुंदर विचारों के साथ पानी की कमी के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए उनमें पानी को बचाने के लिए आग्रह किया गया था। कुछ बच्चों ने जानवरों को पात्र बनाकर कहानी व् नाटक लिखे थे तो कुछ ने सुंदर पोस्टर तैयार किये थे । बचे थे तरु ,जोनी और शाहरुख़ ..........इनके विचार अभी तक किसी को पता नहीं चले थे .... । अरे ये तीनों महा शरारती हैं ये कोई ढंग का काम कर ही नहीं सकते .....लोग फुसफुसा रहे थे। दादाजी ने उन तीनों को संबोधित करते हुए कहा - "भई तुम लोगो ने क्या किया ?" "हमारे प्रयोग तो आपको हमारे घरों में चलकर देखने होंगे .. । " "तो चलो फिर ......" कहते हुए निर्णायक मण्डली उनके साथ चल पड़ी । शाहरुख़ ने पुराने मटकों पर गेरू और चाक से डिज़ाइन बना कर क्यारियों में सजा रखा था। उनमें भरा पानी धीरे धीरे रिसकर क्यारियों को सींच रहा था । हरेक मटके को ढक भी रखा था ताकि मच्छर पैदा न हो । जोनी ने छत की रेलिंग पर प्लास्टिक के डब्बे लटकाकर उनमें तली में छेदकर के सुतली फंसा दी थी । सुतली का दूसरा सिरा गमले में डाल रखा था । सुतली के सहारे पानी बूंद बूंद कर लम्बे समय तक पौधों को तारो ताज़ा रख सकता था । .......और तरु ने भी अनूठा तरीका खोज लिया था । वो डॉक्टर शर्मा के यहाँ से वेस्ट ड्रिप सिस्टम उठा लाया था। जिनकी नीडल(सुई )निकली हुई थी। उनको कोल्ड ड्रिंक की बड़ी बोतलों में फिट कर बगीचे के ऊँचे पेड़ों पर टांग दिया था । इस तरह धीरे धीरे पौधों को सींचने की व्यवस्था की थी । इसमें बूंदों की गति को नियंत्रित भी किया जा सकता था । साथ ही बिल्डिंग बनाते समय दीवारों की तराई में भी यह तरीका काम आ सकता था .....थोडा स्वरुप बदलने की ज़रुरत थी । कहना न होगा कि तीनों बच्चे फर्स्ट आये थे और बाकी सभी बच्चों को भी पार्टी दी गयी थी !! |
मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011
कुछ नया करें
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