रविवार, 22 मई 2011

रूठा मुरगा


ना जाने किस बात पे ऐंठा
मुरगा गाल फुलाए बैठा
क्या अपनी मम्मी से रूठा
किया नहीं कल से मुँह जूठा
मन ही मन वो सबको तोले
लेकिन मुँह से बोल न बोले
पूछे सभी राज वो खोले
प्यारे ये मुरगे जी बोलें
आखिर उसने ली अंगडाई
गोल गोल कुछ आँख घुमाई
पूँछ जरा अपनी फडकाई
लगी  ठेस दिल को  बतलाई
सुबह सभी को मैं ही जगाऊं
कुकडू कूँ की टेर लगाऊं
तुम ना मुझको मानो ताऊ
बोलो अगर भूल मैं जाऊं
कैसे फिर सब काम करेंगे
चिंता में दिन रात घुलेंगे
सोने से पहले जागेंगे
रातों को उठकर भागेंगे
इतने में सूरज दा ‘निकले
हँसकर वो मुरगे से बोले
तू जो प्यारे आँख न खोले
धरती ना ये फिर भी डोले
किरणों के पाखी आयेंगे
बाग बाग में फूल खिलेंगे
भँवरे भी गुनगुन गायेंगे
सारे काम समय से होंगे
दूर करें हम मन के जाले
वहम न कोई मन में पालें

शनिवार, 7 मई 2011

आज़ाद बुलबुल

आओ नन्हीं बुलबुल आओ
मीठा मीठा गीत सुनाओ
पिंजरा सोने का बना दूँ
हीरे उसमें लाख जड़ा दूँ


फल मीठे दूंगी खाने को
ठंडा ठंडा जल पीने को
न भाई न मैं नीलगगन की
सखी सहेली मुक्त पवन की


पिंजरे में रहना न भाये
बंदी कैसे स्वप्न सजाये
माना कि आज़ाद घूमोगी
नदिया पर्वत वन ढूँढोगी


रास्ता लेकिन भटक गयी तो
वर्षा गर्मी खटक गयी तो
मुश्किल से मैं न मानूँ हार
ये सभी तो ईश्वर उपहार




इस जग में वह ही जीतेगा
हिम्मत दिल में जो रख लेगा