रंग बिरंगे फूल विराजे
एक टांग पर तिकधिन नाचे
जैसे गुडिया फ्रॉक निराला
मेरा छाता है मतवाला
बरखा से वो मुझे बचाये
भरी धूप माथा सहलाये
दादा जी का साथी सच्चा
लगता नाना को भी अच्छा
मोर नाचते जब उपवन में
इन्द्रधनुष सजते हैं नभ में
छाता मेरा मुझे बुलाये
गोल गोल घूमे इतराये
चित्र : गूगल से साभार