शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

मच्छर जी


गुनगुन करते गीत सुनाते
बिना बात सिर पर चढ़ जाते
गगन तले व नदी किनारे
रहें पार्क में साथ हमारे

सुई लगाता बनकर डॉक्टर
बीमारी दे जाता अक्सर
साढ़े तीन हैं नाम में अक्षर
जी हाँ दादू वो हैं मच्छर

दादी को मैनें बतलाया
मजबूत इक किला बनवाया
द्वार नहीं पर कई झरोखे
लेकिन मच्छर इक न झाँके

सुन लो मच्छर तुम थे ज्ञानी
हम ले आये मच्छरदानी
अब कितना भी शोर मचाओ
दूर खेलो पास ना आओ  


15 टिप्‍पणियां:

  1. वाह! बहुत ही अच्छी कविता!!!... बेचारे मच्छर जी को अच्छा सबक सिखाया.....:)

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  2. बहुत ही अच्छी बाल कविता ... बेचारा मच्छर ..

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  3. फिर गुड नाईट वाले क्या करेंगे?

    बहुत सुंदर बाल गीत वंदना जी.

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  4. मच्छर जी का गान
    अच्छा गाया है आपने.

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  5. मच्छर बेचारा अब क्या करे :)
    अच्छी बाल कविता के लिए बधाई !!!!!

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  6. सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  7. जब भी जाओगे मच्छरदानी में
    मैं भी साथ चला आऊंगा
    बिना तुम्हारी परमिशन के
    अपना गीत सुना जाऊँगा
    मच्छरदानी में छेद हुआ तो
    मेरी पौ बारह होगी जी
    वंदन करके आपका मै तो
    दावत खूब उड़ा जाऊँगा.

    आपके सुन्दर गीत में मुझे भी कहने का कुछ मन हो गया वंदना जी.
    आपने मेरे ब्लॉग को क्यूँ विस्मृत किया हुआ है जी.

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