शुक्रवार, 21 जून 2013

फर्ज निभाएं


                                      

इक कालीन कहीं मिल जाए

सैर गगन की हम कर आयें

उड़नखटोला लेकर मित्रों

फूलों की घाटी तक जाएँ


रंग बिरंगे फूल खिले हों

गुंजन भँवरे भी करते हों

बुलबुल मीठा गान सुनाती

अठखेली पंछी करते हों


तितली रस फूलों से लाये

सौरभ सबका मन हर्षाये

नन्हा सा इक बीज उगाकर

हम भी अपना फर्ज निभाएं  



चित्र गूगल से साभार