गुरुवार, 31 मार्च 2011

शेर और चुहिया

निशि से बोली उसकी नानी

आओं सुनाएँ एक कहानी

बहुत घना जंगल था जिसमें

एक हुआ था शेर अभिमानी

उस दिन खा पीकर सोया था

वो सुख सपनों मे खोया था

नन्हीं सी एक चुहिया आई

न जाने क्या मन मे समाई

चढ बैठी वो शेर के ऊपर

धमा चौकड़ी खूब मचाई

इधर उस शेर की आँख खुली

लगा जैसे ये धरती हिली

चुहिया को पंजे मे दबाया

डर लगता था अभी चबाया

पूछा उसने हे ! राजेश्वर

कहो आपको किसने सताया

शेर हँसा ठहाका लगाकर

चुहिया को ले हाथ उठाकर

कहा शेर ने तब ये झटपट

तू शैतान बड़ी ही नटखट

जीवन तेरा बचना मुश्किल

फिर भी बोल रही तू पट पट

यूँ तो थी वह डरी डराई

मांगी माफ़ी बात बनाई

हे ! जंगल के राजा सुन लो

कहते ज्ञानी तुम भी सुन लो

मूल्यवान नन्हें प्राणी भी

अब तुम चाहो कुछ भी चुन लो

राजा पर तू करे एहसान

ऐसी तो तू नहीं महान

पर जा तुझको मैंने छोड़ा

चुहिया ने अपना मुँह मोड़ा

सरपट सरपट दौड लगाईं

जैसे कोई अरबी घोड़ा

कुछ दिन बीते मुश्किल आई

शेर की जान पर बन आई

जाल मे फँस गया बेचारा

भूल गया घमंड वो सारा

दया करो हे सबके मालिक

घबरा कर भगवान पुकारा

पता लगा दल-बल बुलवाया

चुहिया ने तब मुक्त कराया

शेर हुआ शर्मिंदा काफी

चुहिया से फिर माँगी माफ़ी

चलो भुलाकर पुरानी बात

मिल जुल काटेंगे दिन बाकी

ध्यान रहेगा मुझे हर बार

सुईं की जगह न ले तलवार

रविवार, 27 मार्च 2011

हिचकी

हिचहिच हिचक जब आई हिचकी

परेशान हुई नन्हीं पिंकी

कहने लगी वह दादी माँ से

खाऊं क्या दही दूध बताशे

पानी काफी सारा पी लिया

नाम न इसने रुकने का लिया

नानी को तेरी याद आई

उत्तर दिया दादी मुस्काई

दादाजी सुनते थे सब बात

आओ बतलायें असली राज

डायफ्राम फेफड़ों के नीचे

सांस ले अंदर बाहर भेजे

फैलता सिकुड़ता फिर फैलता

यह सब निश्चित ताल में चलता

कभी अचानक सिकुड यह जाए

श्वास खिंचे आवाज़ जो आये

इसे ही तब हिचकी कहते हैं

फिर सांस गहरी लेते हैं

या पल भर रोक जो लेते हैं

मुक्त हिचकी से हो जातें हैं

गुरुवार, 17 मार्च 2011

होली आई


धिग- धिग धंग
बाजे चंग
लेकर रंग
होली आई

हाथ अबीर
आशु कबीर
संग समीर
गुडिया आई

उड़े गुलाल
पीला लाल
करे धमाल
होली आई

खुली दुकान
लो पकवान
मीठा पान
गुझिया लायी

होली आई