रविवार, 19 जून 2016

बन्दर का संदेसा


                          क्या मानव को सूझा फिर से , कौतुक कोई न्यारा
या संदेसा लिखकर भेजा, उसने कोई प्यारा

कैसा यह नोटिस है मम्मा, मुझको भी बतलाओ
पढ़ना लिखना मुझको भाए, थोड़ा तो सिखलाओ

चाहूँ तो बेटा मैं भी यह, तुमको खूब पढाऊँ
लेकिन भूल मनुज की देखूँ, सोच सोच घबराऊँ

काट काट कर जंगल नित-नित, कागज ढ़ेर बनाये
ज्ञान बाँटने को फिर नारे, नए नए लिखवाये

पेड़ बचाओ कहता फिरता, इक दूजे से अक्सर
और फाड़ता बिन कारण ही, बिन उत्सव बिन अवसर

पढ़ने लिखने का मतलब है, जो सीखो अपनाओ
कथनी-करनी के अंतर से, अब तो ना भरमाओ

भेज रही हूँ उन्हें निमंत्रण, आकर देखें जंगल
पेड़ों की खुसफुस पंछी के,  कलरव सुनना मंगल

बातों से ना जी बहलाओ, असली जोर लगाओ
छोटे से छोटे कागज़ को, भैया जरा बचाओ