शनिवार, 10 सितंबर 2011

बया का बच्चा

यह नन्हा सा बया का बच्चा

शायद थोडा अकल का कच्चा

मम्मी ने तो मना किया था

पर इसने कब ध्यान दिया था

घर से मैं बाहर खेलूंगा

ऊँची खूब उड़ान भरूँगा

मम्मी से बिन पूछे निकला

खेला उस दिन मन भर खेला

छुपी वहाँ थी मौसी बिल्ली

मानों उड़ा रही थी खिल्ली


घबराया अब देख नजारा

 करके माँ को याद पुकारा

जान मेरी निकल ही जाती

पास अगर माँ ना आ जाती

कहता अब तो पकड़े कान

दूंगा माँ की सीख पर  ध्यान

रविवार, 4 सितंबर 2011

नया जमाना

दादी जी हाँ दादी जी
बात सुनो तुम मेरी भी

कभी चाँद पर रहती थी
चरखा काता करती थी
कहाँ गयी बूढी दादी
तुम मुझको बतलाओ जी

बिटिया अब नया जमाना
नया भेद सबने जाना
छोड़ो अब वो ज्ञान पुराना
नया ज्ञान अपनाओ जी

नहीं हवा नाही पानी
कोशिश अब ये इंसानी
कभी बसेगी कॉलोनी
घर अपना बनवाओ जी

कोशिश तुम ये ही करना
तभी चाँद पर पग धरना
सीखो प्यार से जब रहना
सुन्दर जहां बनाओ जी