गुरुवार, 31 मई 2018

एक शहीद की बेटी



जग जीवन का रेलम-पेला
चढ़ काँधे मैं देखूँ मेला
मन को जब अरमान सताये
पापा तुम बिन कुछ ना भाये
तुम होते फुटबॉल खेलती
हंसकर सब परिणाम झेलती
झूलों पर जब पींग बढाती
ऊँचाई ना कभी डराती
डोली जब ससुराल चलेगी
कमी पिता की बहुत खलेगी
देखूं जब भी परचम प्यारा
मुझे मिले आशीष तुम्हारा
पदचिन्हों पर सदा चलूंगी
तुम जैसी मजबूत बनूँगी
चन्दन चर्चित नाम करूंगी
ऐसा मैं इतिहास रचूँगी 


गूगल पर उपलब्ध चित्र से प्रेरित बालकविता 

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-06-2018) को "अब वीरों का कर अभिनन्दन" (चर्चा अंक-2989) (चर्चा अंक-2968) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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