शुक्रवार, 21 जून 2013

फर्ज निभाएं


                                      

इक कालीन कहीं मिल जाए

सैर गगन की हम कर आयें

उड़नखटोला लेकर मित्रों

फूलों की घाटी तक जाएँ


रंग बिरंगे फूल खिले हों

गुंजन भँवरे भी करते हों

बुलबुल मीठा गान सुनाती

अठखेली पंछी करते हों


तितली रस फूलों से लाये

सौरभ सबका मन हर्षाये

नन्हा सा इक बीज उगाकर

हम भी अपना फर्ज निभाएं  



चित्र गूगल से साभार 

20 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह पोस्ट आज के (२२ जून, २०१३, शनिवार ) ब्लॉग बुलेटिन - मस्तिष्क के लिए हानि पहुचाने वाली आदतें पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई

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  2. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुतिकरण,आभार।

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  3. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (23-06-2013) के चर्चा मंच -1285 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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  4. बहुत सुन्‍दर रचना

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  5. कोमल भावो की अभिवयक्ति .....

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  6. बहुत सुन्दर.सच कोमल भावो की अभिवयक्ति .

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  7. भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  8. सुन्दर, मीठे और आशा का भाव लिए ...
    बहुत ही अच्छे रचना ...

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  9. बहुत सुंदर रचना , आभार


    यहाँ भी पधारे ,http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_1.html

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  10. बहुत सुंदर ..सार्थक काव्याभिव्यक्ति ....!!

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  11. waah...bahut khoob..aapki rchnaaye mere bde kaam aane waali hain........apne pyaare se kaanhaa ko..aapki ye rchnaaye sunaaugi aur uskaa man behlaaungi........
    dhanywaad
    take care

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