फर्ज निभाएं
इक कालीन कहीं मिल जाए
सैर गगन की हम कर आयें
उड़नखटोला लेकर मित्रों
फूलों की घाटी तक जाएँ
रंग बिरंगे फूल खिले हों
गुंजन भँवरे भी करते हों
बुलबुल मीठा गान सुनाती
अठखेली पंछी करते हों
तितली रस फूलों से लाये
सौरभ सबका मन हर्षाये
नन्हा सा इक बीज उगाकर
हम भी अपना फर्ज निभाएं
चित्र गूगल से साभार
रचना तितली जैसी ही प्यारी .
जवाब देंहटाएंआपकी यह पोस्ट आज के (२२ जून, २०१३, शनिवार ) ब्लॉग बुलेटिन - मस्तिष्क के लिए हानि पहुचाने वाली आदतें पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर हैं
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुतिकरण,आभार।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (23-06-2013) के चर्चा मंच -1285 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंbahut badiya
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव ।
जवाब देंहटाएंसुंदर सा प्यारा गीत.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
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जवाब देंहटाएंबिलकुल तितली की तरह सुन्दर ...
कोमल भावो की अभिवयक्ति .....
जवाब देंहटाएंसार्थक संदेश देती कविता्...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.सच कोमल भावो की अभिवयक्ति .
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंसुन्दर, मीठे और आशा का भाव लिए ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छे रचना ...
बहुत सुंदर रचना , आभार
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारे ,http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_1.html
बहुत सुंदर ..सार्थक काव्याभिव्यक्ति ....!!
जवाब देंहटाएंwaah...bahut khoob..aapki rchnaaye mere bde kaam aane waali hain........apne pyaare se kaanhaa ko..aapki ye rchnaaye sunaaugi aur uskaa man behlaaungi........
जवाब देंहटाएंdhanywaad
take care
बहुत उम्दा..बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंpyari meethi rachna..sundar..
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