शनिवार, 23 अप्रैल 2011

जल अनमोल


पूछे दीदी की सहेली
गुडिया बूझो एक पहेली
जादू देखो यह हर बार
मनचाहा होवे आकार
रंग गंध भी अपनी नहीं
मरुस्थल मिले जल्दी नहीं
आता है वो सबके काम
बूझो बूझो उसका नाम
समझ पाई है यह पानी
गुण ऐसे कि हो हैरानी
मिली जगह कि फैले खुल के
नदिया सागर रूप हैं जल के
कण कण इसके दोस्त पक्के
जलद बनते नील गगन के
रंग गंध तो मित्र हजार
शक्ति इसकी होती अपार
देखो व्यर्थ बहे न पानी
वरना होगी परेशानी
बड़ा अनमोल अमृत है जल
आज खोया तो मिले न कल

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