रविवार, 31 जुलाई 2011

चक्कर गोल

धरती अपनी गोल मटोल
कुदरत के सब चक्कर गोल
देखो भेद रही है खोल
समय रहते ही समझो मोल

उर्जा देते हैं सूरज दादा
बाँटेंगे पेड़ क्र लिया वादा
आये ना इसमें कोई बाधा
हिस्सा सबका कम न ज्यादा

दूषित वायु ये अपनाएँ
शुद्ध हवा हमको दे जाएँ
पत्तियां इनकी भोजन बनाएँ
पौधों से सब जीवन पायें

एक दूसरे के उपकारी
शाकाहारी -माँसाहारी
वन वैभव बिन नहीं निभेगी
वन जीवों से रिश्तेदारी

रविवार, 17 जुलाई 2011

बादल छाये


उमड़-उमडकर ढोल बजाएँ

काले काले बादल छाये

सागर का संदेसा लाये

कैसे कैसे रूप सजाये


उजली सी रुई के गोले

पर थोड़े से हो गए मैले

दौड पकड़ खेलें मतवाले

भेष धरे हैं नए निराले


देख हुआ है चुनमुन राजी

नावों में लग जाए बाजी

बिल्लू बंटी अब्दुल काजी

बोलो कौन बनेगा माँझी


बिजली ने बन सखी सहेली

ओढ़ी चूनर नई नवेली

अब महक मेहंदी की फैली

धरती की सज गयी हथेली


देख जलद मेंढक टर्राये

मोर नाच के किसे रिझाये

हलधर के मन को हरखाये

देखो देखो जलधर आये


उमड़-उमडकर ढोल बजाएँ

काले काले बादल छाये

रविवार, 10 जुलाई 2011

गिलहरी

देखो मेरी दोस्त गिलहरी

रची पीठ पर काली धारी

दो हाथों में पकड़ फलों को

लगती है वो कितनी प्यारी

नीचे ऊपर ऊपर नीचे

कूदे-फाँदे इत उत भागे

लंबी लंबी बड़ी भली सी

ब्रुश सी पूँछ गज़ब ही लागे

मैं चाहूँ संग मेरे खेले

खेल खिलौने सारे ले ले

फुर्ती अपनी दे दे थोड़ी

तो फिर मैं बन जाऊं ‘पेले’

मूँगफली उसको ललचाए

कुतर कुतर सारी खा जाये

पापा मम्मी से बोलूँगा

उसकी खातिर ले कर आयें


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