कितने दिनों तक देखी बाट
माँ से आज बनवाई चाट
आलू मटर छोले नमकीन
अब तो अपने हो गए ठाट
पत्ते पर था उसे सजाया
चाट मसाला भी बुरकाया
चटनी भी थी खट्टी मीठी
चाट चाट के सबने खाया
खुशबू थी कुछ उसकी ऐसी
जान गए थे सभी पड़ोसी
हम तो सारे मिल जुल बैठे
बिल्लू अब्दुल पिंटू जस्सी
मानो जीभ लगे अंगारे
मिर्च लगी तो दीखे तारे
छुट्टी हमने खूब मनाई
खाकर चीनी खुश थे सारे
वंदना जी इधर मुंह में पानी आ रहा है...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबरसात में चाट बहुत अच्छी लगती है।
अरे वाह इस कविता को पढ़कर तो मेरे मुंह में भी पानी आगया अब तो मुझे भी चाट खानी ही पड़ेगी :-)
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लगी ये चाट की कविता.....
जवाब देंहटाएंओहो ... आज तो मुंह में पानी आ गया ... शाम को जाना पड़ेगा खाने ... सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...चाट देख कर मुंह में पानी आ गया...
जवाब देंहटाएंदेख देख के मन ललचाता,
जवाब देंहटाएंमुह के भीतर पानी आता।
छोड़ अभी मैं भी जाता हूँ,
चाट मंगा तत्क्षण खाता हूँ।
ये तो मुँह में पानी आ गया. आज इस कविता को ही खा जाने का मन कर रहा है.
जवाब देंहटाएंबाल कविताएँ लिखने वाले कम ही हैं । आप अच्छा कर रही हैं जो बाल कविताएँ लिख रही हैं । अच्छी रचना है। मेरी बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना , सार्थक भाव , बधाई.
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें , आभारी होऊंगा .
बहुत ही प्यारी कविता
जवाब देंहटाएंअरे वाह!
जवाब देंहटाएंक्या खूब ठाठ हैं आपकी चाट के.
दिन में तारे दिखाती चटपटी.
आपकी सरल शब्दों में लिखी कविता
दिल को लुभाती है ,वन्दना जी.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा.
मुंह में पानी आ रहा है। खाने को मिलेगी क्या इतनी सुंदर चाट।
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डायन का तिलिस्म!
हर अदा पर निसार हो जाएँ...
मन में हिलोरें सी उठ रही हैं ..वापिस अपने पुराने दिनों में पहुंचा दिया 'तितली ' ने ...खूबसूरत कारनामा है यह आपका .. :)
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