फरफर करती उड़ती
जाती
मन को ये भाने वाली
है
रंग बिरंगे रूप
सजाये
पतंग मेरी मतवाली है
कोई माथे चाँद सजाये
कभी तिरंगा हम
फहराएं
संग दूसरों के
मिलजुलकर
खेले वो खेल निराली
है
लम्बी सी इक पूंछ
लगाये
सर पर ताज पहन
इठलाये
बादल से है दौड़
लगाती
पंछी से करे ठिठोली
है
छूट डोर हाथों से
जाये
या कि पतंग कभी कट
जाये
सुख दुख का ही नाम
जिंदगी
समझाये मेरी सहेली
है
सभी चित्र गूगल से साभार
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (04-01-2014) को "क्यों मौन मानवता" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1482 में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
नववर्ष पर आपने बहुत अच्छी पतंग उड़ा दी है.
जवाब देंहटाएंकाश! यह कभी न कटे और दिनोदिन ऊँची ही उडती जाये.
बहुत सुन्दर .
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : नींद क्यों आती नहीं रात भर
पतंग सी जिंदगी आसमान छूती रहे ...
जवाब देंहटाएंमंगलवार 14/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंआप भी एक नज़र देखें
धन्यवाद .... आभार ....
जिंदगी का पाठ सिखाती हैं पतंग ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
मकर सक्रांति की शुभकामनाएं!
बहुत सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंsukh dukh ka hi nam zindagi ....bahut sunder ....
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता
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