शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

मेरी पतंग

फरफर करती उड़ती जाती 
मन को ये भाने वाली है
रंग बिरंगे रूप सजाये
पतंग मेरी मतवाली है

कोई माथे चाँद सजाये
कभी तिरंगा हम फहराएं
संग दूसरों के मिलजुलकर
खेले वो खेल निराली है

लम्बी सी इक पूंछ लगाये
सर पर ताज पहन इठलाये
बादल से है दौड़ लगाती
पंछी से करे ठिठोली है


छूट डोर हाथों से जाये
या कि पतंग कभी कट जाये
सुख दुख का ही नाम जिंदगी

समझाये मेरी सहेली है 








सभी चित्र गूगल से साभार 

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (04-01-2014) को "क्यों मौन मानवता" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1482 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. नववर्ष पर आपने बहुत अच्छी पतंग उड़ा दी है.
    काश! यह कभी न कटे और दिनोदिन ऊँची ही उडती जाये.

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  3. पतंग सी जिंदगी आसमान छूती रहे ...

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  4. मंगलवार 14/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    आप भी एक नज़र देखें
    धन्यवाद .... आभार ....

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  5. जिंदगी का पाठ सिखाती हैं पतंग ..
    बहुत सुन्दर रचना
    मकर सक्रांति की शुभकामनाएं!

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