बुधवार, 21 दिसंबर 2011
सांताक्लॉज
बुधवार, 30 नवंबर 2011
चुहिया और बिल्ली
मैं तो हूँ शैतान की नानी
पूंछ उठाकर छम छम नाचे
छोटी नटखट चुहिया रानी
नीचे ऊपर ऊपर नीचे
चादर ताने परदे खींचे
लगा के ऐनक ऐसे बैठे
जैसे कोई चिट्ठी बांचे
दूर से बिल्ली देख रही थी
पलकें झप झप झपक रही थी
कैसे पकडूँ कैसे झपटूँ
बैठी बैठी सोच रही थी
दोहराऊँगी वही कहानी
भूल जायेगी सब शैतानी
मैं तो ठहरी शेर की मौसी
याद आएगी तुझ को नानी
समझ न मुझको सीढ़ी सादी
देखी न होगी मुझ सी आंधी
बुजुर्गों ने भी मानी हार
किसने मेरे घंटी बाँधी
ताम ताम ते तत ते तानी
बेशक तू शैतान की नानी
लेकिन मैं तुझसे भी सयानी
मेरा नहीं है कोई सानी
रविवार, 13 नवंबर 2011
जंगल में क्रिकेट
शनिवार, 29 अक्टूबर 2011
कठपुतली
चंचल चपल अरी कठपुतली
ठुमक ठुमक नाचे बन बिजली
डोर हिलाकर कौन चलाये
हाथ इशारे मौन नचाये
चाल सहेली किसने बदली
इत उत नाचे जैसे तितली
मधुर मधुर तू गान सुनाए
संदेसा अनुपम दे जाए
देख कमरिया तेरी पतली
याद हमें आ जाए मछली
http://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=Vrsj4ZAU2PY#!
रविवार, 2 अक्टूबर 2011
तितली

दूर देश से आई तितली
शनिवार, 10 सितंबर 2011
बया का बच्चा

यह नन्हा सा बया का बच्चा
शायद थोडा अकल का कच्चा
मम्मी ने तो मना किया था
पर इसने कब ध्यान दिया था
घर से मैं बाहर खेलूंगा
ऊँची खूब उड़ान भरूँगा
मम्मी से बिन पूछे निकला
खेला उस दिन मन भर खेला
छुपी वहाँ थी मौसी बिल्ली
मानों उड़ा रही थी खिल्ली
घबराया अब देख नजारा
करके माँ को याद पुकारा
जान मेरी निकल ही जाती
पास अगर माँ ना आ जाती
कहता अब तो पकड़े कान
दूंगा माँ की सीख पर ध्यानरविवार, 4 सितंबर 2011
नया जमाना
रविवार, 21 अगस्त 2011
बरखा रानी
सोमवार, 15 अगस्त 2011
भारत की नई तस्वीर
अपने हाथों से लिखेंगे हम अपनी तकदीर
बनायेंगे नये भारत की एक नई तस्वीर
गूंजे वेद ऋचाएं और पुराणों की वाणी
दिखलाती सन्मार्ग दादी नानी की कहानी
जन्मेंगे फिर यहाँ दधीचि कर्ण दानवीर
बनायेंगे नये भारत की एक नई तस्वीर
माता-पिता भक्त यहाँ राम श्रवण सम होंगे
संकल्पपूर्ण धीर भागीरथ भगत भी होंगे
मीरा सी भक्ति होगी होवेंगे भक्त कबीर
बनायेंगे नये भारत की एक नई तस्वीर
गांधी सा धैर्य और विवेकानंद का विवेक
फैलेगा हर घर में महावीर बुद्ध आलोक
सदा रहें तैयार देश हित बन जाएँ फ़कीर
बनायेंगे नये भारत की एक नई तस्वीर
लक्ष्मीबाई वीरांगना सी होंगी बालिकाएं
ममतामयी पन्नाधाय सी घर घर साधिकाएं
कल्पना चावला सा होगा एक लक्ष्य गंभीर
बनायेंगे नये भारत की एक नई तस्वीर
न भुलाएं अपनी थाती को लिखें संस्कृति गीत
केवल इतिहास नहीं हम विज्ञान के भी मीत
प्रेम अहिंसा आधारित होंगी नई तकनीक
बनायेंगे नये भारत की एक नई तस्वीर
रविवार, 31 जुलाई 2011
चक्कर गोल
रविवार, 17 जुलाई 2011
बादल छाये
उमड़-उमडकर ढोल बजाएँ
काले काले बादल छाये
सागर का संदेसा लाये
कैसे कैसे रूप सजाये
उजली सी रुई के गोले
पर थोड़े से हो गए मैले
दौड पकड़ खेलें मतवाले
भेष धरे हैं नए निराले
देख हुआ है चुनमुन राजी
नावों में लग जाए बाजी
बिल्लू बंटी अब्दुल काजी
बोलो कौन बनेगा माँझी
बिजली ने बन सखी सहेली
ओढ़ी चूनर नई नवेली
अब महक मेहंदी की फैली
धरती की सज गयी हथेली
देख जलद मेंढक टर्राये
मोर नाच के किसे रिझाये
हलधर के मन को हरखाये
देखो देखो जलधर आये
उमड़-उमडकर ढोल बजाएँ
काले काले बादल छाये
रविवार, 10 जुलाई 2011
गिलहरी

देखो मेरी दोस्त गिलहरी
रची पीठ पर काली धारी
दो हाथों में पकड़ फलों को
लगती है वो कितनी प्यारी
नीचे ऊपर ऊपर नीचे
कूदे-फाँदे इत उत भागे
लंबी लंबी बड़ी भली सी
ब्रुश सी पूँछ गज़ब ही लागे
मैं चाहूँ संग मेरे खेले
खेल खिलौने सारे ले ले
फुर्ती अपनी दे दे थोड़ी
तो फिर मैं बन जाऊं ‘पेले’
मूँगफली उसको ललचाए
कुतर कुतर सारी खा जाये
पापा मम्मी से बोलूँगा
उसकी खातिर ले कर आयें
thanks to
बुधवार, 29 जून 2011
छुपम-छुपाई खेलें तारे
शनिवार, 18 जून 2011
धुनिया और गीदड
ले हाथों में धुनकी घोंटा
और संग था डोरी लोटा
वह था धुनिया अपनी धुन में
धुनक धुनक करता था वन में
डर को अपने दूर भगाता
मन ही मन खुद को समझाता
खेल नहीं कोई दंगल है
मेरे भाई यह जंगल है
दूर बहुत नहीं अगला गांव
चल बढ़ चलाचल मेरे पांव
सांझ हुई तू पार करा दे
अब के भगवन मुझे बचा ले
तभी सामने गीदड़ आया
रंग में था जो अभी नहाया
उसने जब धुनिया को देखा
था सामने जनम का लेखा
यह तो मुझको ना छोडेगा
गर भागूं पीछे दौडेगा
हालत धुनिया की भी ऐसी
बिल्ली देख कबूतर जैसी
एक एक पल ऐसे बीता
गीदड़ उसको दीखा चीता
गले दोनों के अटके प्राण
आया गीदड़ को फिर ध्यान
समय काम आई चतुराई
चापलूस ने जान बचाई
हर एक वचन को मन में तोला
मीठे सुर में गीदड़ बोला
लेकर हाथ धनुष और बाण
कहाँ की सैर करे सुलतान
देव भाग्य ने पलटा खाया
धुनिया मन ही मन मुस्काया
बोली मीठी पड़ी जब कान
आई रे अब जान में जान
सुन जंगल में मंगल सुराज
चले आये हम भी वनराज
इक दूजे को देकर आदर
भागे सरपट जान बचाकर
टिप्पणी
१ . लोककथा पर आधारित
२ .रुई धुनने का उपकरण धनुष जैसा होता था
रविवार, 22 मई 2011
रूठा मुरगा

शनिवार, 7 मई 2011
आज़ाद बुलबुल
मंगलवार, 26 अप्रैल 2011
हठ जो करो तो ...
भूले भटकों को राह दिखाता
दिशाहारों की आशा जगाता
हठीला है पूरब का प्यारा
खूब चमकता भोर का तारा
सब तारे चलकर इसे मनाएं
किरण बहनें भी लाख समझाएं
जब तक सूरज खुद ना आये
नन्हा ये तारा घर ना जाये

चलती रही है समय की चक्की
थी राजकुंवर ध्रुव की धुन पक्की
पा न सको जग में वो चीज नहीं
माँ ने ऐसी ही शिक्षा दी थी
हठ जो करो तो ध्रुव सी ही करना
छोटी बातों पर ध्यान न धरना
या तो सितारा भोर का बनना
या ध्रुव बन उत्तर दिशा चमकना
शनिवार, 23 अप्रैल 2011
जल अनमोल
